लेकिन साक्ष्य के कानून के अनुसार जब एक बार एक व्यक्ति को सामान्य रूप से अस्वस्थ चित्त घोषित किया जाना सिद्ध कर दिया गया है, तो सिद्धि भार कि निष्पादक स्वस्थ-चित्त था, वापस उसी व्यक्ति पर होगा जो कंट्रेक्ट के आधार पर न्यायालय से राहत चाहता है।
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राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपील में अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय को उलटते हुए इस तर्क को सही बताया कि सिद्धि भार परिवर्तित हो गया था, जिस के कारण निष्पादक को स्वस्थ चित्त घोषित करने का भार मदन लाल पर था, लेकिन वह इसे सिध्द नहीं कर सका और उसे दत्तक पुत्र नहीं माना जा सकता है।